सम्मेलन में महत्वपूर्ण पक्ष रहे भारत ने कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता अवसंरचना (जीबीएफ) समझौते के हकीकत बनने तक जैव विविधता पर संधि (सीबीडी) संबंधी पहुंच एवं लाभ साझाकरण तंत्र तथा अन्य लक्ष्यों के तहत ‘डिजिटल अनुक्रम सूचना’ (डीएसआई) तंत्र पर विचार के लिए जोर दिया।
जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन सीओपी15 सफलतापूर्वक संपन्न हो गया जिसमें लगभग 200 देशों ने प्रकृति को संरक्षित करने और पारिस्थितिकी तंत्र को हुए नुकसान को उलटने के लिए एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते की राह आसान नहीं रही क्योंकि इसे चार साल तक चली गहन माथापच्ची के बाद इस सम्मेलन में अंजाम तक पहुंचाया गया।
सम्मेलन में महत्वपूर्ण पक्ष रहे भारत ने कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता अवसंरचना (जीबीएफ) समझौते के हकीकत बनने तक जैव विविधता पर संधि (सीबीडी) संबंधी पहुंच एवं लाभ साझाकरण तंत्र तथा अन्य लक्ष्यों के तहत ‘डिजिटल अनुक्रम सूचना’ (डीएसआई) तंत्र पर विचार के लिए जोर दिया।
भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने किया। उनके साथ सरकार के अधिकारियों की एक टीम थी।
यादव ने कहा, वैश्विक जैव विविधता अवसंरचना समझौते को अंतिम तौर पर अपनाने से पहले भारत ने सीओपी प्रेसीडेंसी और जैव विविधता से संबंधित संधि सचिवालय के साथ गहन वार्ता एवं चर्चा की।
उन्होंने कहा, विश्व स्तर पर सभी लक्ष्यों और उद्देश्यों को रखने के भारत के सुझावों को अन्य प्रस्तावों के साथ स्वीकार कर लिया गया। पर्यावरण के लिए जीवन शैली (लाइफ) के लिए भारत की वकालत, और सामान्य लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं को जीबीएफ में जगह मिली।
पिछले साल ग्लासगो में सीओपी26 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा ‘लाइफ’ पहल की शुरुआत की गई थी। इस पहल में पर्यावरण संरक्षण के लिए संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करने की बात कही गई है।
राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (एनबीए) के पूर्व अध्यक्ष विनोद माथुर ने कहा कि भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने विकासशील दक्षिण से संबंधित कई मुद्दों पर आम सहमति बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
असल में, जैव विविधता संपन्न अधिकतर देश एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच स्थित हैं।
चीन की मध्यस्थता वाला समझौता भूमि, महासागरों और प्रजातियों को प्रदूषण, क्षरण और जलवायु परिवर्तन से बचाने पर केंद्रित है।
जीबीएफ का लक्ष्य 2030 तक 30 प्रतिशत भूमि, अंतर्देशीय जल और महासागरीय पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण करना है।
भारत पहले से ही 113 से अधिक देशों के समूह-उच्च महत्वाकांक्षा गठबंधन (एचएसी) का सदस्य है, जिसका उद्देश्य 2030 तक दुनिया के 30 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र को संरक्षण के दायरे में लाना है।
विशेषज्ञों का कहना है कि सीओपी15 सम्मेलन में जैव विविधता को बचाने के लिए ऐतिहासिक सौदे के हिस्से के रूप में अपनाए गए डीएसआई के माध्यम से प्रौद्योगिकी कंपनियों जैसे उपयोगकर्ताओं से भारत जैसे देशों के लिए धन का प्रवाह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के नीति अनुसंधान और विकास प्रमुख गुइडो ब्रोखोवेन ने कहा कि डीएसआई संरक्षण पर अधिक महत्वाकांक्षी प्रयासों को वित्तपोषित कर भारत को लाभान्वित करेगा।
उन्होंने पीटीआई-से कहा, ‘‘मुझे लगता है कि संरक्षण के इन बढ़ते प्रयासों से संबंधित जैव विविधता वित्त में वृद्धि होगी।’’
ब्रोखोवेन ने उल्लेख किया कि जीबीएफ के लक्ष्य और उद्देश्यों की प्रकृति वैश्विक है।
उन्होंने कहा, भारत सहित देशों को अब इन्हें अपनी राष्ट्रीय योजनाओं के माध्यम से राष्ट्रीय लक्ष्यों और उद्देश्यों में बदलने की आवश्यकता है।
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