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Shaurya Path: AUKUS Partnership, Great Wall of Steel, McMahon Line, World’s Largest Arms Importer संबंधी मुद्दों पर Brigadier (R) DS Tripathi से बातचीत

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पनडुब्बी करार इन तीनों देशों के बीच सुरक्षा समझौते का एक भाग है। जहां तक इस करार की बात है तो अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने अमेरिका के सैन डिएगो में एक शिखर सम्मेलन के बाद यह घोषणा की।

नमस्कार, प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में आप सभी का स्वागत है। आज के कार्यक्रम में बात करेंगे अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के बीच हुए परमाणु संचालित पनडुब्बी समझौते की, चीन में नयी सरकार के नये संकल्प की, भारत के दुनिया में हथियार आयात के मामले में नंबर वन पर बने रहने की और पाकिस्तान के हालात की। इन मुद्दों पर बातचीत के लिए हमारे साथ हमेशा की तरह मौजूद हैं ब्रिगेडियर सेवानिवृत्त श्री डीएस त्रिपाठी जी।

प्रश्न-1. अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन ने परमाणु संचालित पनडुब्बी समझौते की घोषणा की है जिस पर चीन ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। इस समझौते का भारत के लिए क्या महत्व है और इससे चीन को कैसे घेरा जायेगा?

उत्तर- अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन ने परमाणु संचालित पनडुब्बी समझौते की घोषणा की है, जिसका मकसद हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के आक्रामक रवैये का मुकाबला करना है। समझौते के तहत, ऑस्ट्रेलिया को अमेरिका से कम से कम तीन परमाणु संचालित पनडुब्बियां प्राप्त होंगी। दरअसल तीनों देशों का गठबंधन ऑकस 2021 में अस्तित्व में आया और इसमें ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका शामिल है। ऑकस का मकसद हिंद-प्रशांत में चीन के आक्रमक रवैया से निपटना है। पनडुब्बी करार इन तीनों देशों के बीच सुरक्षा समझौते का एक भाग है। जहां तक इस करार की बात है तो अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने अमेरिका के सैन डिएगो में एक शिखर सम्मेलन के बाद यह घोषणा की। यह कदम हिंद-प्रशांत क्षेत्र को ‘‘स्वतंत्र व मुक्त’’ रखने के लिए उठाया गया है। अल्बनीज और सुनक के साथ सैन डिएगो में बाइडन ने कहा, ‘‘2030 के दशक की शुरुआत में कांग्रेस के समर्थन और अनुमोदन के साथ अमेरिका तीन वर्जीनिया-श्रेणी की पनडुब्बियों को ऑस्ट्रेलिया को बेचेगा, अगर जरूरत हुई तो दो और पनडुब्बियां बेचेगा…।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह अत्याधुनिक पारंपरिक रूप से सशस्त्र परमाणु-संचालित पनडुब्बी… ब्रिटेन की पनडुब्बी प्रौद्योगिकी व डिजाइन को अमेरिकी प्रौद्योगिकी से जोड़ती है।’’ बाइडन ने कहा कि ‘एसएसएन-एयूकेयूएस’ एक अत्याधुनिक मंच होगा, जिसे तीन देशों से पनडुब्बी प्रौद्योगिकी का सर्वोत्तम लाभ उठाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

‘एसएसएन-एयूकेयूएस’ ब्रिटेन की अगली पीढ़ी के एसएसएन डिजाइन पर आधारित होगा, जिसमें अत्याधुनिक अमेरिकी पनडुब्बी प्रौद्योगिकियों को शामिल किया गया है और इसे ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन दोनों द्वारा बनाया और तैनात किया जाएगा। एसएसएन से तात्पर्य परमाणु संचालित पनडुब्बी है और एयूकेयूएस (ऑकस) ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका के बीच हिंद प्रशांत के लिए किए सुरक्षा समझौते को कहा जाता है। बाइडन ने कहा, ‘‘ऑस्ट्रेलिया के कर्मचारी अमेरिका और ब्रिटेन के कर्मचारियों के साथ नौकाओं पर और हमारे स्कूलों तथा शिपयार्ड में अड्डों पर आएंगे। हम ऑस्ट्रेलिया में अपने बंदरगाह दौरे भी बढ़ाना शुरू करेंगे। अभी जब हम यहां बात कर रहें तब भी एक परमाणु-संचालित पनडुब्बी यूएसएस एशविले पर्थ में एक बंदरगाह पर पहुंच रही है।’’ 

अल्बनीज ने तीन देशों के बीच संबंधों में इसे एक नया अध्याय बताते हुए कहा कि यह एक ऐसी दोस्ती है जो उनके साझा मूल्यों, लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्धता तथा शांतिपूर्ण और समृद्ध भविष्य के समान दृष्टिकोण पर आधारित है। उन्होंने कहा, ‘‘हम यहां सैन डिएगो में पुष्टि करते हैं ऑकस समझौता ऑस्ट्रेलिया की रक्षा क्षमता में सबसे बड़ा एकल निवेश है, हमारे क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया की राष्ट्रीय सुरक्षा तथा स्थिरता को मजबूत करता है। कौशल, रोजगार और बुनियादी ढांचे में रिकॉर्ड निवेश के साथ ऑस्ट्रेलिया को बेहतर रक्षा क्षमता प्रदान करता है…।’’ 

वहीं सुनक ने समझौते पर कहा, ‘‘60 साल पहले, यहां सैन डिएगो में राष्ट्रपति केनेडी ने एक उच्च उद्देश्य ‘स्वतंत्रता, शांति और सुरक्षा का संरक्षण’ की बात की। आज हम फिर उसी मकसद के लिए एकसाथ खड़े हैं। यह स्वीकार करते हुए कि इसे पूरा करने के लिए, हमें नयी तरह की चुनौतियों का सामना करने के लिए नए तरह के रिश्ते बनाने होंगे जैसा कि हम हमेशा से करते आए हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘पिछले 18 महीने में हमारे समक्ष पेश होने वाली चुनौतियां बढ़ गई हैं। रूस का यूक्रेन में अवैध आक्रमण, चीन की बढ़ती उग्रता, उत्तर कोरिया और ईरान का अस्थिर व्यवहार… यह सभी खतरे दुनिया के अव्यवस्थित व विभाजित बनने को लेकर आगाह करते हैं।’’ सुनक ने कहा, ‘‘इन चुनौतियों का सामना करते हुए यह पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है कि हम अपने देशों के लचीलेपन को मजबूत करें।”

दूसरी ओर, चीन ने परमाणु संचालित पनडुब्बी करार की निंदा करते हुए कहा है कि यह समझौता परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) का उल्लंघन है और तीनों देश ‘‘खतरनाक और गलत रास्ते पर जा रहे हैं।’’ समझौते की घोषणा पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि ऑकस संधि के तहत परमाणु पनडुब्बियों और अन्य अत्याधुनिक सैन्य प्रौद्योगिकी पर सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए तीन देशों के प्रयास एक ‘‘शीत युद्ध की मानसिकता’’ थी, जो हथियारों की होड़ को बढ़ावा देगी और क्षेत्रीय शांति एवं स्थिरता को नुकसान पहुंचाएगी।

प्रश्न-2. चीन के राष्ट्रपति के रूप में तीसरी बार पद संभालने वाले शी जिनपिंग ने चीनी सेना को ‘‘ग्रेट वॉल ऑफ स्टील’’ बनाने का संकल्प लिया है। चीन ने अपना रक्षा बजट भी बढ़ा दिया है। इस बीच, भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि चीन के साथ भारत का संबंध ‘जटिल’ है। यही नहीं, अमेरिकी खुफिया तंत्र ने भी पाकिस्तान और चीन के साथ भारत का तनाव बढ़ने की आशंका जतायी है। इस सबको कैसे देखते हैं आप?

उत्तर- चीन के राष्ट्रपति के रूप में अपने अभूतपूर्व तीसरे कार्यकाल की शुरुआत करते हुए शी जिनपिंग ने चीनी सेना को ‘‘ग्रेट वॉल ऑफ स्टील’’ (फौलादी दीवार) बनाने का सोमवार को संकल्प लिया। चीन ने हाल में सऊदी अरब और ईरान के बीच वार्ता की मेजबानी करके वैश्विक मामलों में और बड़ी भूमिका निभाने की मंशा का संकेत दिया है। ईरान और सऊदी अरब सात साल के तनाव के बाद राजनयिक संबंध बहाल करने और दूतावासों को फिर से खोलने पर सहमत हो गए। पिछले सप्ताह बीजिंग में हुआ यह समझौता चीन के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत के तौर पर देखा जा रहा है क्योंकि खाड़ी देशों का मानना है कि अमेरिका धीरे-धीरे मध्य पूर्व से पीछे हट रहा है। चीन की संसद ने पिछले सप्ताह ही शी को अभूतपूर्व रूप से पांच साल का तीसरा कार्यकाल देने का सर्वसम्मति से समर्थन किया, जिससे उनके ताउम्र सत्ता में बने रहने का रास्ता साफ हो गया है। पिछले साल अक्टूबर में चीन की सत्तारुढ़ कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) की कांग्रेस की बैठक में 69 वर्षीय शी को फिर से सीपीसी का नेता चुना गया था। इसी के साथ, शी सीपीसी के संस्थापक माओत्से तुंग के बाद पांच साल के तीसरे कार्यकाल के लिए पार्टी प्रमुख चुने वाले पहले चीनी नेता बन गए थे।

चीन की संसद द्वारा राष्ट्रपति के रूप में तीसरा कार्यकाल देने का सर्वसम्मति से समर्थन किए जाने के बाद पहली बार दिए भाषण में शी ने अपनी अगुवाई वाली सीपीसी के नेतृत्व को कायम रखने का आह्वान किया। चीन की राष्ट्रीय विधायिका के समापन समारोह में 69 वर्षीय शी ने कहा, ‘‘मैं तीसरी बार राष्ट्रपति का पद ग्रहण कर रहा हूं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘लोगों का भरोसा मुझे आगे बढ़ने की सबसे अधिक प्रेरणा देता है और यह भरोसा कायम रखना मेरे कंधों पर एक भारी जिम्मेदारी भी है।’’ उन्होंने संकल्प लिया कि वह ‘‘संविधान द्वारा सौंपे गए कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करेंगे’’ और चीनी लोगों के ‘‘अटूट विश्वास को कभी कम नहीं होने देंगे।’’ शी ने कहा, ‘‘सुरक्षा विकास का आधार है, जबकि स्थिरता समृद्धि की एक शर्त है।’’ शी ने चीन के रक्षा बलों के आधुनिकीकरण को आगे बढ़ाने और सशस्त्र बलों को ‘‘ग्रेट वॉल ऑफ स्टील’’ बनाने के प्रयासों का भी आह्वान किया। उन्होंने कहा कि देश की सेना राष्ट्रीय संप्रभुता, सुरक्षा और विकास हितों की प्रभावी ढंग से रक्षा करने में सक्षम है। शी ने दुनिया के सात अजूबों में शामिल ‘ग्रेट वॉल ऑफ चाइना’ का जिक्र करते हुए यह बात की। चीन की 20,000 किलोमीटर से भी लंबी इस विशाल दीवार को चीन के विभिन्न शासकों द्वारा हमलावरों से रक्षा के लिए बनवाया गया था।

शी का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब अमेरिका और कुछ पड़ोसी देशों के साथ चीन के संबंध तनावपूर्ण हैं। नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) के वार्षिक सत्र के समापन पर शी ने सीपीसी के नेतृत्व और पार्टी के मुख्य नीति निकाय, सीपीसी केंद्रीय समिति के केंद्रीकृत, एकीकृत नेतृत्व को कायम रखने पर जोर दिया। शी को पार्टी के संस्थापक माओत्से तुंग की तरह ही पार्टी का ‘‘मुख्य नेता’’ माना जाता है। लगभग 3,000 विधायकों की उपस्थिति वाले एनपीसी समापन समारोह में अपने भाषण में शी ने कहा कि सीपीसी जैसी बड़ी पार्टी के सामने आने वाली विशेष चुनौतियों से निपटने के लिए सतर्क और दृढ़ रहना महत्वपूर्ण है। सरकारी समाचार एजेंसी ‘शिन्हुआ’ की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने हमेशा आत्म-सुधार करते रहने, भ्रष्टाचार से दृढ़ता से लड़ने का साहस रखने के महत्व को रेखांकित किया।

जहां तक भारत-चीन संबंधों की बात है तो उसके संदर्भ में अमेरिकी खुफिया तंत्र ने सांसदों से कहा है कि उसे भारत-पाकिस्तान और भारत-चीन के बीच तनाव बढ़ने तथा उनके बीच संघर्ष होने की आशंका है। खुफिया तंत्र के अनुसार, पाकिस्तान के ‘‘कथित या वास्तविक’’ उकसावों की स्थिति में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पहले की तुलना में भारत द्वारा कहीं अधिक सैन्य बल के जरिए जवाबी कार्रवाई किए जाने की आशंका है। यह मूल्यांकन अमेरिकी खुफिया तंत्र के वार्षिक खतरे के आकलन का हिस्सा है, जिसे राष्ट्रीय खुफिया निदेशक के कार्यालय द्वारा अमेरिकी कांग्रेस के समक्ष प्रस्तुत किया गया। रिपोर्ट के अनुसार, भारत-चीन द्विपक्षीय सीमा विवाद को बातचीत के जरिए सुलझाने में लगे हुए हैं, लेकिन 2020 में दोनों देशों की सेनाओं के बीच हुए संघर्ष के मद्देनजर संबंध तनावपूर्ण ही रहेंगे। इस घटना के बाद से दोनों के बीच संबंधों की स्थिति गंभीर है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘विवादित सीमा पर भारत और चीन दोनों द्वारा ‘सेना का विस्तार’ दो परमाणु शक्तियों के बीच सशस्त्र टकराव के जोखिम को बढ़ाता है, जिससे अमेरिकी लोगों तथा हितों को सीधा खतरा हो सकता है। इसमें अमेरिकी हस्तक्षेप की मांग की जाती है। पिछले गतिरोधों से स्पष्ट है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर लगातार निम्न-स्तर के संघर्ष तेजी से बढ़ सकते हैं।’’ मई 2020 में दोनों देशों के बीच पूर्वी लद्दाख में सैन्य गतिरोध के बाद से चीन और भारत के बीच संबंध बेहद तनावपूर्ण हैं। भारत का कहना है कि जब तक सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति नहीं होगी तब तक चीन के साथ उसके संबंध सामान्य नहीं हो सकते।

प्रश्न-3. हम रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की ओर बढ़ने का दावा कर रहे हैं लेकिन एक हालिया रिपोर्ट दर्शाती है कि भारत हथियार आयात के मामले में दुनिया में शीर्ष पर बरकरार है। ऐसा क्यों?

उत्तर- रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के कदम हालिया वर्षों में उठाये गये हैं और उनके परिणाम आने में समय लगेगा। यदि इस दिशा में आजादी के बाद से ही प्रयास शुरू किये गये होते तो आज स्थिति कुछ और होती। लेकिन उस समय डील करने पर ज्यादा जोर दिया जाता है। जहां तक हालिया रिपोर्ट की बात है तो उसके मुताबिक भारत दुनिया का शीर्ष हथियार आयातक बना हुआ है, हालांकि वर्ष 2013-17 और 2018-22 के बीच इसके आयात में 11 प्रतिशत की गिरावट आई है। स्टॉकहोम स्थित थिंक टैंक ‘सिपरी’ द्वारा सोमवार को जारी एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई। रिपोर्ट में कहा गया कि रूसी हमले के बाद अमेरिका और यूरोप से मिली सैन्य सहायता के बाद यूक्रेन पिछले साल दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा हथियार आयातक बन गया। ‘सिपरी’ से जुड़े वरिष्ठ अध्ययनकर्ता पीटर वेजेमेन ने कहा है कि एक तरफ जहां पिछले साल हथियारों के आयात में गिरावट दर्ज की गई, वहीं रूस से बढ़ते तनाव के चलते यूरोपीय देशों में हथियार खरीद में तेजी देखी गई। रिपोर्ट में कहा गया, भारत के हथियार आयात में गिरावट का संबंध जटिल खरीद प्रक्रिया, शस्त्र आपूर्तिकर्ताओं में विविधता लाना और आयात के स्थान पर घरेलू डिजाइन को तरजीह देने से है। ‘स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट’ (सिपरी) ने कहा कि वर्ष 2018-22 के दौरान दुनिया के पांच सबसे बड़े हथियार आयातक भारत, सऊदी अरब, कतर, ऑस्ट्रेलिया और चीन थे। रिपोर्ट के मुताबिक, पांच सबसे बड़े हथियार निर्यातकों में अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और जर्मनी शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2018-22 के दौरान दुनिया के आठवें सबसे बड़े हथियार आयातक पाकिस्तान द्वारा आयात में 14 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिसमें चीन इसका मुख्य आपूर्तिकर्ता रहा।

प्रश्न-4. अमेरिकी अमेरिकी सीनेट के एक द्विदलीय प्रस्ताव में कहा गया है कि अमेरिका मैकमोहन रेखा को चीन और अरुणाचल प्रदेश के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमा के रूप में मान्यता देता है और अरुणाचल प्रदेश को भारत का अभिन्न हिस्सा मानता है। इस प्रस्ताव का क्या असर पड़ेगा और मैकमोहन रेखा क्या है?

उत्तर- यह प्रस्ताव भारत के लिए बहुत अहम है क्योंकि इसमें हमारे देश का पक्ष बहुत सही ढंग से रखा गया है। अमेरिकी सीनेट के एक द्विदलीय प्रस्ताव के अनुसार अमेरिका मैकमोहन रेखा को चीन और अरुणाचल प्रदेश के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमा के रूप में मान्यता देता है और अरुणाचल प्रदेश को भारत का अभिन्न हिस्सा मानता है। सीनेटर जेफ मर्कले के साथ सीनेट में प्रस्ताव पेश करने वाले सीनेटर बिल हैगर्टी ने कहा, ‘‘ऐसे समय में जब चीन मुक्त एवं खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए लगातार गंभीर खतरा उत्पन्न कर रहा है, अमेरिका के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह इस क्षेत्र में अपने रणनीतिक भागीदारों, खासकर भारत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहे।’’ यह द्विदलीय प्रस्ताव अरुणाचल प्रदेश को स्पष्ट रूप से भारत के अभिन्न हिस्से के रूप में मान्यता देने के लिए सीनेट के समर्थन को दर्शाता है। यह प्रस्ताव वास्तविक नियंत्रण रेखा पर यथास्थिति को बदलने के लिए चीन की सैन्य आक्रामकता की निंदा करता है और मुक्त एवं खुले भारत-प्रशांत के समर्थन के लिए अमेरिका-भारत रणनीतिक साझेदारी और ‘क्वाड’ (चतुष्पक्षीय संवाद समूह) को मजबूत करता है।

भारत और चीन के बीच पूर्वी क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हुई हिंसक सैन्य झड़प के बाद आए इस प्रस्ताव में अमेरिका द्वारा मैकमोहन रेखा को चीन और भारत के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमा के रूप में एक बार फिर मान्यता दी गई है। यह प्रस्ताव पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) के इस दावे को भी खारिज करता है कि अरुणाचल प्रदेश पीआरसी का क्षेत्र है। सीनेटर जेफ मर्कले ने कहा भी है कि स्वतंत्रता और एक नियम-आधारित शासन का समर्थन करने वाले अमेरिकी मूल्यों को हमारे सभी कार्यों और संबंधों के केंद्र में होना चाहिए, खासकर जब पीआरसी सरकार एक अलग सोच के साथ आगे बढ़ रही है। उन्होंने कहा है कि प्रस्ताव स्पष्ट करता है कि अमेरिका अरुणाचल प्रदेश को भारत का अभिन्न हिस्सा मानता है, न कि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का… और क्षेत्र में समान विचारधारा वाले अंतरराष्ट्रीय भागीदारों के साथ-साथ वहां समर्थन और सहायता को गहरा करने की अमेरिकी प्रतिबद्धता को दोहराता है।

इसके अलावा, विदेश मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में कह ही दिया है कि चीन के साथ भारत का संबंध ‘जटिल’ है और अप्रैल-मई 2020 में पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर एकतरफा ढंग से यथास्थिति बदलने के चीनी प्रयास के कारण सीमावर्ती क्षेत्रों में अमन एवं शांति को गंभीर रूप से क्षति पहुंची। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन प्रयासों का भारतीय सशस्त्र बलों से उपयुक्त प्रतिक्रिया मिली।

प्रश्न-5. अप्रैल में दिल्ली में होने वाली एससीओ रक्षा मंत्रियों की बैठक में भाग लेने के लिए भारत ने पाकिस्तान को निमंत्रण दिया है। क्या इस बैठक में पाकिस्तान शामिल होगा? दोनों देशों के वर्तमान संबंधों को कैसे देखते हैं आप क्योंकि अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट तो भारत-पाक के बीच एक बड़े संघर्ष की संभावना भी जता रही है।

उत्तर- मेरी समझ से फिलहाल पाकिस्तानी रक्षा मंत्री नहीं आयेंगे। पाकिस्तान के जो हालात हैं वह किसी से छिपे हुए नहीं हैं। वहां जिस प्रकार राजनीतिक अस्थिरता गहराती जा रही है वह उस मुल्क के लिए बड़ी मुश्किल लायेगी क्योंकि पाकिस्तान की जिन भी विदेशी वित्तीय संस्थानों से कर्ज के लिए बात चल रही है वह ऐसे माहौल में कर्ज देने से बचेंगे। जहां तक भारत-पाकिस्तान संबंधों पर अमेरिकी रिपोर्ट की बात है तो उसमें कहा गया है कि भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ने तथा उनके बीच संघर्ष होने की आशंका है। खुफिया तंत्र के अनुसार, पाकिस्तान के ‘‘कथित या वास्तविक’’ उकसावों की स्थिति में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पहले की तुलना में भारत द्वारा कहीं अधिक सैन्य बल के जरिए जवाबी कार्रवाई किए जाने की आशंका भी है। यह आशंका सही भी हो सकती है क्योंकि हम उरी और पुलवामा हमले का बदला जोरदार ढंग से ले चुके हैं।

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