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चाय बोर्ड ने कहा कि हितधारकों के साथ बातचीत के बाद ही ‘भारत नीलामी’ प्रणाली शुरू की जाएगी

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कलकत्ता टी ट्रेडर्स एसोसिएशन (सीटीटीए) की वार्षिक आम बैठक में पहाड़ी ने कहा कि पूरे भारत में नीलामी प्रणाली का कार्यान्वयन करने का दायित्व चाय बोर्ड को दिया गया है। पहाड़ी ने कहा, ‘‘आप आश्वस्त रहें कि सभी अंशधारकों से परामर्श किए बिना कुछ भी नहीं किया जाएगा। व्यापक स्तर पर अंशधारकों से परामर्श किया जायेगा।’’

चाय बोर्ड के चेयरमैन सौरव पहाड़ी ने कहा है कि चाय उद्योग के अंशधारकों के साथ परामर्श के बाद ही ‘भारत नीलामी’ प्रणाली को उत्तर भारत में लागू किया जाएगा।
कलकत्ता टी ट्रेडर्स एसोसिएशन (सीटीटीए) की वार्षिक आम बैठक में पहाड़ी ने कहा कि पूरे भारत में नीलामी प्रणाली का कार्यान्वयन करने का दायित्व चाय बोर्ड को दिया गया है।
पहाड़ी ने कहा, ‘‘आप आश्वस्त रहें कि सभी अंशधारकों से परामर्श किए बिना कुछ भी नहीं किया जाएगा। व्यापक स्तर पर अंशधारकों से परामर्श किया जायेगा।’’


हालांकि, सीटीटीए के निवर्तमान चेयरमैन अनीश भंसाली ने कहा कि उत्तर भारत में नीलामी की मौजूदा प्रणाली ने ‘‘अपनी जीजिविषा को साबित किया है और उसे नई प्रक्रिया में जाने की कोई आवश्यकता नहीं है।’’
उद्योग के अनुसार, उत्तर भारत में ज्यादातर असम और पश्चिम बंगाल की चाय शामिल है, जबकि दक्षिण भारत में तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक की चाय को शामिल किया जाता हैं।

भंसाली ने कहा, ‘‘उद्योग ने पहले ही मैन्युअल नीलामी से इलेक्ट्रॉनिक नीलामी में रूपांतरण देखा है। इलेक्ट्रॉनिक नीलामी के अपने फायदे थे लेकिन इसने प्रणाली की स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को समाप्त कर दिया। भारत नीलामी का कार्यान्वयन अनावश्यक है क्योंकि उद्योग उत्तर भारत में वर्तमान प्रारूप के अनुरूप ढल चुका है।’’
उत्तर भारत में नीलामी की वर्तमान प्रणाली को ‘अंग्रेजी नीलामी प्रणाली’ कहा जाता है। उन्होंने कहा कि ‘भारत नीलामी’ दक्षिण भारत में काम कर रही है।

उनके अनुसार, ‘दक्षिण भारत की तुलना में उत्तर भारत की नीलामी में मात्रा और कीमत वसूली क्रमशः कहीं अधिक और बेहतर है। ये केवल पारंपरिक और सीटीसी दोनों किस्मों की गुणवत्ता में अंतर के कारण हैं।’’
उत्तर भारत में भारत नीलामी प्रणाली के विरोध के बारे में पूछे जाने पर चाय बोर्ड के एक अधिकारी ने कहा कि ’हर बदलाव का विरोध होता है और यही बात दक्षिण भारत में भी देखी गई।’
पहाड़ी ने कहा कि चाय बोर्ड बदलाव के दौर से गुजर रहा है और इसने आज भी अपनी प्रासंगिकता नहीं खोई है।

Disclaimer:प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।



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